इतिहास दोहरा रहा है! निफ्टी50 में 1996 जैसी गिरावट, निवेशकों को क्या करना चाहिए?

संक्षेप:-
निफ्टी50 में 1996 के बाद पहली बार लगातार पांच महीने की गिरावट हुई है, जिससे बाजार आठ महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है। कमजोर कॉर्पोरेट नतीजे, विदेशी निवेशकों की बिकवाली और वैश्विक अनिश्चितताओं ने निवेशकों की चिंता बढ़ा दी है। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने बाजार को लेकर सतर्क रुख अपनाने की सलाह दी है, जबकि सिटीग्रुप ने भारतीय इक्विटी को “ओवरवेट” कर संभावनाएं जताई हैं। निवेशकों को जल्दबाजी से बचते हुए बाजार के स्थिर होने का इंतजार करना चाहिए।

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भारतीय शेयर बाजार इस समय ऐतिहासिक गिरावट के दौर से गुजर रहा है। प्रमुख बेंचमार्क इंडेक्स निफ्टी50 लगातार पांच महीने से गिर रहा है, जो 1996 के बाद पहली बार हुआ है। सेंसेक्स और निफ्टी, दोनों ही अपने आठ महीने के सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुके हैं। पिछले कुछ महीनों में बाजार में आई गिरावट ने निवेशकों की चिंता बढ़ा दी है।

गिरावट के पीछे कई प्रमुख कारण हैं। सबसे पहले, कंपनियों के तिमाही नतीजे उम्मीद से कमजोर आए हैं, जिससे बाजार पर नकारात्मक असर पड़ा है। इसके अलावा, विदेशी निवेशक (FII) लगातार भारतीय बाजार से पैसे निकाल रहे हैं। वैश्विक स्तर पर भी कई आर्थिक अनिश्चितताएं बनी हुई हैं, जिनका असर भारतीय बाजार पर भी देखने को मिल रहा है। कुल मिलाकर, इन सभी कारकों की वजह से चार महीने पहले जो बाजार अपने रिकॉर्ड स्तर पर था, वह अब लगातार नीचे आ रहा है।

अगर हम आंकड़ों पर गौर करें, तो फरवरी में अब तक निफ्टी50 और सेंसेक्स लगभग 4% गिर चुके हैं। अगर इसे पिछले साल 27 सितंबर 2024 के ऑल-टाइम हाई से तुलना करें, तो निफ्टी 13.8% और सेंसेक्स 12.98% तक गिर चुका है। यह कोई मामूली गिरावट नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि बाजार में गहराई से दबाव बना हुआ है।

इतिहास पर नजर डालें तो निफ्टी में लगातार पांच महीने तक गिरावट 1996 के अलावा सिर्फ एक बार और 1994-95 में देखने को मिली थी, जब बाजार लगातार आठ महीने गिरा था। यानी, इस बार की गिरावट भी एक ऐतिहासिक घटना मानी जा सकती है, जो दिखाती है कि बाजार कितनी बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है।

विश्लेषकों की राय – सतर्कता बनाम अवसर

बाजार की मौजूदा स्थिति को लेकर विभिन्न विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज का मानना है कि बाजार अभी दिशाहीन बना रहेगा और इसमें जल्द कोई स्थिरता आने की संभावना नहीं दिख रही। उन्होंने कहा कि गिरावट के बावजूद, पिछले 12 महीनों का कुल रिटर्न लगभग सपाट रहा है, जिससे वैल्यू निवेश (सस्ते शेयर खरीदने के मौके) के अवसर कम हो गए हैं।

कोटक का मानना है कि बाजार पर दबाव बने रहने के पीछे चार प्रमुख कारण हैं:

उच्च वैल्यूएशन – यानी, कई शेयर अभी भी बहुत महंगे हैं।
आय (Earnings) में गिरावट का खतरा – कंपनियों की कमाई कमजोर रह सकती है।
वैश्विक ब्याज दरों में बढ़ोतरी – जिससे निवेश का प्रवाह प्रभावित हो सकता है।
विदेशी निवेशकों की घटती रुचि – जो बाजार में भारी बिकवाली कर रहे हैं।
कोटक ने यह भी कहा कि छोटे और मिडकैप शेयरों पर सबसे ज्यादा असर पड़ सकता है, क्योंकि इन कंपनियों के शेयर पहले से ही ओवरवैल्यूड (काफी महंगे) हैं, जिससे निवेशकों का भरोसा कमजोर हो सकता है।

दूसरी ओर, सिटीग्रुप भारतीय शेयर बाजार को लेकर थोड़ा ज्यादा आशावादी नजर आ रहा है। उन्होंने भारतीय शेयर बाजार की रेटिंग को “न्यूट्रल” से “ओवरवेट” में अपग्रेड किया है। इसका मतलब यह हुआ कि सिटीग्रुप को अब भारतीय बाजार में निवेश का बेहतर अवसर नजर आ रहा है।

सिटीग्रुप का कहना है कि हाल ही में बाजार में आई गिरावट के बाद अब वैल्यूएशन पहले के मुकाबले आकर्षक हो गया है, जिससे आगे की संभावनाएं बेहतर हो सकती हैं। उनका यह भी मानना है कि भारत वैश्विक स्तर पर आने वाले किसी भी टैरिफ (कर) संबंधी जोखिम को झेलने के लिए बेहतर स्थिति में है, जिससे भारतीय बाजार अन्य उभरते बाजारों की तुलना में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है।

इसके विपरीत, सिटीग्रुप ने आसियान बाजार (ASEAN – साउथ ईस्ट एशिया के देश) की रेटिंग घटा दी है। उन्होंने वहां के शेयर बाजार को “अंडरवेट” कर दिया है, जिसका मतलब यह है कि वे अब वहां ज्यादा निवेश करने की सिफारिश नहीं कर रहे। उनका मानना है कि आसियान देशों में कंपनियों की कमाई कमजोर हो रही है और वहां ग्रोथ की संभावनाएं सुस्त हैं।

अमेरिकी बाजार भी दबाव में, वैश्विक प्रभाव जारी

भारत के अलावा, अमेरिका के शेयर बाजारों में भी इस समय कमजोरी दिख रही है। पिछले हफ्ते शुक्रवार को वहां इस साल का सबसे खराब ट्रेडिंग सत्र देखने को मिला। इसका मुख्य कारण था – कमजोर आर्थिक आंकड़े और मुद्रास्फीति (Inflation) की बढ़ती उम्मीदें।

1995 के बाद पहली बार अमेरिकी उपभोक्ताओं की मुद्रास्फीति उम्मीदें इतनी ज्यादा बढ़ गई हैं, जिससे अब यह आशंका बढ़ गई है कि फेडरल रिजर्व (अमेरिका का केंद्रीय बैंक) ब्याज दरों में जल्द कटौती नहीं करेगा। जब तक ब्याज दरें ऊंची रहेंगी, शेयर बाजार में दबाव बना रहेगा, क्योंकि महंगे लोन की वजह से कंपनियों की कमाई प्रभावित हो सकती है।

इसके अलावा, अमेरिकी बाजार में 2.7 ट्रिलियन डॉलर की ऑप्शन एक्सपायरी हुई, जिससे शेयर बाजार में भारी अस्थिरता देखी गई। ऑप्शन एक्सपायरी का मतलब है कि बहुत सारे निवेशकों को अपने ट्रेड बंद करने पड़े, जिससे बाजार में भारी उतार-चढ़ाव आया।

इसके अलावा, चीन में एक नए कोरोनावायरस अध्ययन की रिपोर्ट के बाद, फिर से महामारी से जुड़ी चिंताएं बढ़ गई हैं। इसका असर यह हुआ कि कोविड-19 वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों के शेयरों में तेजी देखने को मिली, क्योंकि अगर वायरस से जुड़ी नई परेशानियां आती हैं, तो इन कंपनियों को फायदा हो सकता है।

आगे क्या? निवेशकों को क्या करना चाहिए?

बाजार इस समय बहुत ही नाजुक स्थिति में है। कोटक इंस्टीट्यूशनल की राय में निवेशकों को अभी सतर्क रहना चाहिए और जल्दबाजी में कोई बड़ा फैसला नहीं लेना चाहिए, क्योंकि बाजार अभी पूरी तरह स्थिर नहीं हुआ है।

दूसरी ओर, सिटीग्रुप को बाजार में कुछ संभावनाएं नजर आ रही हैं, लेकिन उनका भी मानना है कि निवेशकों को सही मौके का इंतजार करना चाहिए।

अगर आप लॉन्ग टर्म निवेशक हैं, तो यह गिरावट कुछ अच्छे स्टॉक्स को खरीदने का अवसर हो सकता है, लेकिन ध्यान रखें कि अभी बाजार में और उतार-चढ़ाव संभव है।
अगर आप शॉर्ट टर्म निवेशक हैं, तो बेहतर होगा कि अभी किसी भी तरह की जल्दबाजी से बचें और बाजार के स्थिर होने का इंतजार करें।
बाजार के अगले कुछ महीनों का रुख इस बात पर निर्भर करेगा कि वैश्विक ब्याज दरें कैसे बदलती हैं, कंपनियों के नतीजे कैसे आते हैं, और विदेशी निवेशकों का रुझान कैसा रहता है। फिलहाल, बाजार को लेकर सतर्क रहना सबसे अच्छा फैसला होगा।

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