इतिहास में पहली बार डॉलर के मुकाबले रुपया 85.97 तक कमजोर
आज भारतीय रुपया 85.97 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया, जो विदेशी निवेशकों की बिकवाली, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और डॉलर की मजबूत मांग के कारण हुआ। इससे घरेलू बाजारों और रुपये पर दबाव पड़ा। इस गिरावट के कारण महंगाई और आर्थिक संकट की आशंका जताई जा रही है।

भारतीय मुद्रा, रुपया, 10 जनवरी को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर 85.97 पर पहुंच गई। यह गिरावट वैश्विक और घरेलू कारकों का परिणाम है, जिसमें विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की भारी बिकवाली, कच्चे तेल की कीमतों में लगातार वृद्धि, और अमेरिकी डॉलर की मजबूती शामिल है।
रुपये की ऐतिहासिक गिरावट
आज के कारोबारी सत्र में रुपया 85.8788 पर खुला और दिन के दौरान 85.8638 से 85.9750 के बीच रहा। दिन के अंत में यह 85.9728 पर बंद हुआ, जो पिछले सत्र के 85.8638 के मुकाबले कमजोर है। यह तीन महीने में रुपये की सबसे बड़ी गिरावटों में से एक है।अक्टूबर 2024 से जनवरी 2025 के बीच रुपये में करीब 2 रुपये की गिरावट आई है। 3 अक्टूबर को रुपया 83.9688 पर था, जो अब 85.9738 पर पहुंच गया है।गिरावट के प्रमुख कारण
1. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें
कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें रुपये पर लगातार दबाव डाल रही हैं। ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत आज $78.83 प्रति बैरल पर पहुंच गई, जो $1.91 या 2.48% की बढ़ोतरी को दर्शाता है। यूरोप और अमेरिका में इस साल सर्दियां पिछली दो सर्दियों से ज्यादा कड़ी हैं, जिसके चलते ऊर्जा की मांग बढ़ी है। इसके अलावा, रूस पर नए प्रतिबंध आपूर्ति पर असर डाल सकते हैं।2. विदेशी निवेशकों की बिकवाली
विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से लगातार पैसे निकालने का असर भी रुपये पर पड़ा है। डॉलर की बढ़ती मांग ने भारतीय मुद्रा को कमजोर किया है।3. अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड्स और मजबूत डॉलर
अमेरिका में ट्रेजरी यील्ड्स में बढ़ोतरी और डॉलर इंडेक्स की मजबूती ने भी रुपये को कमजोर करने में अहम भूमिका निभाई। अमेरिका में मजबूत रोजगार डेटा की उम्मीद ने डॉलर की मांग को बढ़ा दिया है।घरेलू शेयर बाजार पर असर
आज घरेलू शेयर बाजार में भी गिरावट देखने को मिली।- सेंसेक्स 241.30 अंक या 0.31% गिरकर 77,378.91 पर बंद हुआ।
- निफ्टी 95 अंक या 0.40% की गिरावट के साथ 23,431.50 पर बंद हुआ।
रुपये की गिरावट के आर्थिक प्रभाव
1. महंगाई में बढ़ोतरी
रुपये की कमजोरी का सीधा असर आयातित वस्तुओं की कीमतों पर पड़ता है। कच्चा तेल महंगा होने से पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ सकते हैं, जिससे परिवहन लागत और महंगाई में इजाफा होगा।2. विदेशी निवेश में गिरावट
रुपये में कमजोरी विदेशी निवेशकों को भारतीय बाजारों से दूर कर सकती है। यह देश की आर्थिक वृद्धि को धीमा कर सकता है।3. घरेलू कंपनियों पर दबाव
वे कंपनियां जो कच्चे माल के लिए आयात पर निर्भर हैं, उन्हें अधिक भुगतान करना होगा। इससे उनकी उत्पादन लागत बढ़ेगी और मुनाफा कम होगा।आगे का रास्ता
रुपये की स्थिति में सुधार के लिए सरकार और रिजर्व बैंक को मिलकर कदम उठाने होंगे। डॉलर की मांग को नियंत्रित करने और विदेशी निवेशकों का भरोसा बनाए रखने के लिए नीतिगत बदलाव किए जाने की संभावना है।इसके अलावा, कच्चे तेल की कीमतों पर नियंत्रण और अमेरिकी डॉलर के दबाव को कम करना भारत के लिए प्राथमिकता होगी।भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है। डॉलर की मजबूत मांग और कच्चे तेल की ऊंची कीमतें इस गिरावट के मुख्य कारक हैं। हालांकि, रुपये की स्थिरता के लिए दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता होगी। निवेशकों और आम जनता को भी सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि रुपये की कमजोरी का असर उनकी दैनिक जिंदगी और वित्तीय योजनाओं पर पड़ सकता है।सम्बंधित ख़बरें

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