RBI MPC: आरबीआई 6 दिसंबर को ब्याज दरों में कटौती की संभावना नहीं, रेपो दर पर आरबीआई का फैसला क्या होगा?

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की आगामी बैठक में नीतिगत ब्याज दरों को स्थिर रखने की संभावना है। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, लगातार ग्यारहवीं बार रेपो दर को 6.5% पर बनाए रखा जा सकता है। लेकिन इस बार चर्चा का केंद्र केवल ब्याज दर नहीं, बल्कि बढ़ती मुद्रास्फीति और धीमी आर्थिक विकास दर के बीच संतुलन बनाए रखना होगा।
कमजोर आर्थिक विकास पर चिंता
भारत की आर्थिक विकास दर सितंबर तिमाही में 5.4% रही, जो पिछले सात तिमाहियों में सबसे कम है। यह गिरावट विनिर्माण क्षेत्र और उपभोक्ता खर्च में सुस्ती के कारण हुई। इससे पहले जून तिमाही में विकास दर 6.7% और पिछले वर्ष की समान तिमाही में 8.1% थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह आर्थिक मंदी केंद्रीय बैंक को अपने आर्थिक अनुमानों पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर सकती है। बैंक ऑफ बड़ौदा की अर्थशास्त्री अदिति गुप्ता का कहना है, “सितंबर तिमाही के कमजोर आंकड़े यह इशारा करते हैं कि जीडीपी के मौजूदा अनुमान को घटाया जा सकता है।”
यह आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति को दर्शाते हैं, जहां न केवल उपभोक्ता मांग धीमी हुई है, बल्कि निवेश और उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। आरबीआई के सामने चुनौती है कि वह मौद्रिक नीति के ज़रिए अर्थव्यवस्था को गति दे, जबकि मुद्रास्फीति पर नियंत्रण भी बनाए रखे।
मुद्रास्फीति में उछाल और खाद्य कीमतें
मुद्रास्फीति आरबीआई के लिए इस समय सबसे बड़ी चिंता बनी हुई है। अक्टूबर में खुदरा मुद्रास्फीति 14 महीने के उच्चतम स्तर 6.2% पर पहुंच गई, जबकि सितंबर में यह 5.5% थी। सबसे अधिक असर खाद्य मुद्रास्फीति का रहा, जो अक्टूबर में बढ़कर 10.9% हो गई।
सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि ने मुख्य मुद्रास्फीति को भी प्रभावित किया है। असमान वर्षा और आपूर्ति शृंखला में रुकावटों के कारण यह वृद्धि जारी रही। विशेषज्ञों का कहना है कि इन आपूर्ति झटकों के चलते FY25 के लिए आरबीआई का 4.5% का मुद्रास्फीति अनुमान 5% तक पहुंच सकता है।
IDFC फर्स्ट बैंक की अर्थशास्त्री गौरा सेनगुप्ता कहती हैं, “पिछले महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति ने लगातार ऊंचे स्तर बनाए रखे हैं। इस वजह से पूरे वित्त वर्ष की मुद्रास्फीति का औसत बढ़ सकता है।”
हालांकि, विशेषज्ञ यह भी उम्मीद कर रहे हैं कि सब्जियों की कीमतों में मौसमी गिरावट और खाद्य पदार्थों की आपूर्ति में सुधार से आने वाले महीनों में कुछ राहत मिल सकती है।
नीतिगत रुख में बदलाव की संभावना
आरबीआई ने अक्टूबर में अपने रुख को ‘विथड्रॉअल ऑफ एकॉमोडेशन’ से बदलकर ‘तटस्थ’ कर दिया था। रेपो दर को 6.5% पर स्थिर रखते हुए, केंद्रीय बैंक ने यह संकेत दिया था कि वह मुद्रास्फीति पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए तैयार है।
हालांकि, इस बार कुछ विशेषज्ञ रुख में बदलाव की संभावना जता रहे हैं। टाटा एसेट मैनेजमेंट के मुरली नागराजन का कहना है, “मुद्रास्फीति अगले महीनों में 4% के करीब आ सकती है। इसे देखते हुए आरबीआई ‘तटस्थ’ से ‘समायोजी’ रुख अपना सकता है।”
अगर आरबीआई अपना रुख ‘समायोजी’ करता है, तो यह संकेत हो सकता है कि केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए और अधिक लचीला दृष्टिकोण अपना सकता है।
आरबीआई की चुनौती और रास्ता आगे
इस बार की मौद्रिक नीति बैठक में आरबीआई के सामने दो मुख्य चुनौतियां हैं: आर्थिक विकास को समर्थन देना और मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखना। यह संतुलन साधना आसान नहीं होगा, खासकर तब जब मुद्रास्फीति के आंकड़े लगातार ऊंचे आ रहे हैं और आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी हो रही है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, आरबीआई दिसंबर की बैठक में कोई बड़ा बदलाव नहीं करेगा, लेकिन आने वाले महीनों के लिए एक स्पष्ट संकेत देगा। खाद्य मुद्रास्फीति में सुधार और मौद्रिक नीति में स्थिरता से आरबीआई को अपने दीर्घकालिक लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिल सकती है।
अब सभी की नजरें 6 दिसंबर को आने वाले फैसले पर हैं, जहां यह तय होगा कि आरबीआई इन चुनौतियों से कैसे निपटता है और भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आगे का रास्ता क्या तय करता है।