SEBI घोटाला: सेबी और बीएसई अधिकारियों के खिलाफ FIR पर रोक, 4 मार्च को होगी सुनवाई
संक्षेप:-
बॉम्बे हाई कोर्ट ने 4 मार्च तक सेबी और बीएसई अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर पर रोक लगा दी है। मामला 1994 में कौल्स रिफाइनरीज़ की लिस्टिंग से जुड़ी कथित अनियमितताओं का है, जिसमें पूर्व सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच समेत पांच अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए गए हैं। सेबी और बीएसई ने आरोपों को खारिज करते हुए इसे निराधार बताया है। इस विवाद के चलते बीएसई के शेयरों में गिरावट आई है, और सभी की नजरें आगामी सुनवाई पर हैं।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि 4 मार्च को होने वाली सुनवाई तक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के अधिकारियों के खिलाफ कोई एफआईआर दर्ज न की जाए। यह मामला तब प्रकाश में आया जब सेबी और बीएसई ने मुंबई की एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB) अदालत द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का रुख किया। एसीबी अदालत ने पूर्व सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच और पांच अन्य अधिकारियों के खिलाफ जांच का आदेश दिया था, जिसमें 1994 में हुई कौल्स रिफाइनरीज़ की लिस्टिंग से जुड़े कथित घोटाले के आरोप शामिल हैं। हाई कोर्ट के आदेश से फिलहाल इन अधिकारियों को अस्थायी राहत मिली है, लेकिन इस पूरे विवाद ने भारतीय वित्तीय बाजारों में उथल-पुथल मचा दी है।
यह मामला तीन दशक पुराना है, जब कौल्स रिफाइनरीज़ नामक कंपनी को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किया गया था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि इस लिस्टिंग में गंभीर अनियमितताएं थीं, जिन्हें सेबी और बीएसई के अधिकारियों ने नजरअंदाज किया। एसीबी अदालत में दायर याचिका में कहा गया कि सेबी के मौजूदा तीनWhole-time सदस्य और बीएसई के दो अधिकारी इस लिस्टिंग प्रक्रिया में शामिल थे और उन्होंने बाजार नियमों का उल्लंघन किया। हालांकि, सेबी और बीएसई दोनों ने इस आरोप को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि उस समय ये अधिकारी अपने वर्तमान पदों पर नहीं थे और उनका इस लिस्टिंग प्रक्रिया से कोई लेना-देना नहीं था।
सेबी ने कोर्ट में यह भी दलील दी कि शिकायतकर्ता एक ‘आदतन याचिकाकर्ता’ है, जो पहले भी इस तरह की कई याचिकाएं दाखिल कर चुका है। सेबी के अनुसार, इस व्यक्ति की कई याचिकाएं पहले ही अदालत द्वारा खारिज की जा चुकी हैं और कुछ मामलों में तो अदालत ने उन पर जुर्माना भी लगाया है। बीएसई ने भी अपने बयान में यही बात दोहराई और इस मामले को “निराधार और परेशान करने वाला” करार दिया।
हालांकि, यह विवाद केवल 1994 की लिस्टिंग तक सीमित नहीं है। पूर्व सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच को लेकर पहले भी कई आरोप लग चुके हैं। खासकर, जब अमेरिकी शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग ने उन पर और उनके पति धवल बुच पर हितों के टकराव (Conflict of Interest) के आरोप लगाए थे। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि बुच और उनके पति ने उन विदेशी कंपनियों में निवेश किया था, जो अदानी समूह के विनोद अदानी से कथित तौर पर जुड़ी हुई थीं। यह आरोप ऐसे समय में सामने आए थे जब अदानी समूह पहले से ही बाजार में वित्तीय अनियमितताओं और कॉर्पोरेट गवर्नेंस से जुड़े सवालों का सामना कर रहा था।
इस पूरे घटनाक्रम का भारतीय शेयर बाजार पर भी प्रभाव पड़ा है। इस मामले की खबर सामने आते ही बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के शेयरों में 5% की गिरावट देखी गई। इसके पीछे एक अन्य महत्वपूर्ण वजह भी थी—गोल्डमैन सैक्स ने हाल ही में बीएसई के शेयर पर अपनी रेटिंग घटा दी और लक्ष्य मूल्य में कटौती कर दी। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के कानूनी विवादों और नियामक अनिश्चितताओं से बाजार में अस्थिरता बढ़ सकती है, जिससे निवेशकों का भरोसा कमजोर हो सकता है।
अब इस मामले में 4 मार्च को हाई कोर्ट में सुनवाई होगी, जहां यह तय होगा कि सेबी और बीएसई के अधिकारियों के खिलाफ आगे की कार्रवाई की जाए या नहीं। यह सुनवाई बेहद महत्वपूर्ण होगी क्योंकि इसका असर न केवल इन संस्थानों की प्रतिष्ठा पर पड़ेगा, बल्कि भारतीय वित्तीय बाजारों और नियामक संस्थाओं की पारदर्शिता पर भी सवाल उठा सकता है। बाजार विश्लेषकों और कानूनी विशेषज्ञों की नजर इस मामले की अगली सुनवाई पर टिकी हुई है, जो यह तय करेगी कि क्या यह मामला आगे बढ़ेगा या इसे खारिज कर दिया जाएगा।

EV बैटरियों और मोबाइल फोन के आयात शुल्क हटाने से Exide Industries और Amara Raja Energy के शेयर 5% तक उछले

रुपया डॉलर के मुकाबले 3 पैसे मजबूत, 85.94 पर हुई शुरुआत

क्रेडिट कार्ड लोन बकाया ₹2.9 लाख करोड़ तक पहुंचा, PSU बैंकों पर बढ़ता दबाव

अगले सप्ताह चार नए SME IPO और पांच नए लिस्टिंग की तैयारी

Divine Hira Jewellers IPO: क्या लिस्टिंग पर मिलेगा मुनाफा? जानिए GMP और अनुमानित प्राइस
