मार्च 2025 में FPI ने 30,015 करोड़ रुपये के भारतीय शेयर बेचे, साल 2025 में की कुल बिकवाली 1,42,616 करोड़ रुपये तक पहुंची, बाजार पर दबाव जारी
संक्षेप:-
मार्च के पहले पखवाड़े में विदेशी निवेशकों (FPIs) ने भारतीय शेयर बाजार में 30,015 करोड़ रुपये की बिकवाली की, जिससे सालभर की कुल एफआईआई निकासी 1,42,616 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। अधिकांश फंड चीन के शेयर बाजार में जा रहे हैं, जबकि अमेरिकी व्यापार युद्ध के कारण सोना और डॉलर सुरक्षित निवेश बने हुए हैं। निफ्टी गुरुवार को 22,397.2 पर बंद हुआ, साप्ताहिक गिरावट 0.7% रही।

भारत के शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों (FPIs) की बिकवाली का सिलसिला मार्च के पहले पखवाड़े में भी जारी रहा। इस दौरान उन्होंने कुल 30,015 करोड़ रुपये के शेयर बेच डाले। इस साल अब तक विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) द्वारा कुल 1,42,616 करोड़ रुपये की बिकवाली हो चुकी है।
जनवरी में, एफपीआई ने 78,027 करोड़ रुपये के शेयर बेचे थे, जबकि फरवरी में यह आंकड़ा 34,574 करोड़ रुपये रहा। इस बीच, घरेलू संस्थागत निवेशक (DIIs) बाजार में स्थिरता बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं। गुरुवार को एफआईआई ने 793 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जबकि डीआईआई ने 1,724 करोड़ रुपये की खरीदारी की।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय बाजार में बिकवाली का दबाव अब धीरे-धीरे कम हो सकता है, क्योंकि वैल्यूएशन अब पहले की तुलना में ज्यादा आकर्षक हो रहे हैं। जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट वी. के. विजयकुमार के अनुसार, “एफपीआई फंड का बड़ा हिस्सा अब भारतीय बाजार से निकलकर चीनी शेयर बाजार में जा रहा है, क्योंकि 2025 में चीन के शेयर बाजार ने बाकी वैश्विक बाजारों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है।”
इसके अलावा, डॉलर इंडेक्स में हाल ही में आई गिरावट के कारण अमेरिकी बाजार में पूंजी प्रवाह सीमित हो सकता है। साथ ही, अमेरिका और अन्य देशों के बीच व्यापार युद्ध से उत्पन्न अनिश्चितता के कारण निवेशक सुरक्षित संपत्तियों जैसे सोना और डॉलर की ओर रुख कर सकते हैं।
इस बिकवाली का असर भारतीय शेयर बाजार पर साफ नजर आ रहा है। गुरुवार को निफ्टी 22,397.2 के स्तर पर बंद हुआ, जिसमें 73.30 अंकों यानी 0.33% की गिरावट देखी गई। वहीं, साप्ताहिक आधार पर निफ्टी 0.7% कमजोर हुआ। बाजार में भारी उतार-चढ़ाव और विदेशी निवेशकों की बिकवाली के बीच निवेशकों की नजर अब आगामी वैश्विक घटनाओं और घरेलू आर्थिक संकेतकों पर टिकी हुई है।

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