रुपये ने दिखाया दम, तीन हफ्तों में सबसे बड़ी बढ़त, 30 पैसे मजबूत होकर बंद हुआ

संक्षेप:-
भारतीय रुपया 5 मार्च को 30 पैसे मजबूत होकर 86.9675 पर बंद हुआ, जो तीन हफ्तों में उसकी सबसे बड़ी बढ़त रही। विदेशी निवेश प्रवाह और डॉलर इंडेक्स में गिरावट रुपये की मजबूती के प्रमुख कारण रहे। अगर वैश्विक टैरिफ तनाव नहीं बढ़ा, तो रुपया मार्च में 86.50 या 86.00 तक और मजबूत हो सकता है।

भारतीय रुपया 5 मार्च को 30 पैसे मजबूत होकर 86.9675 पर बंद हुआ।

भारतीय रुपये ने 5 मार्च को जबरदस्त मजबूती दिखाई और तीन हफ्तों में अपनी सबसे बड़ी बढ़त दर्ज की। रुपये की कीमत 86.9675 प्रति डॉलर पर बंद हुई, जो पिछले सत्र के 87.2700 के मुकाबले 30 पैसे से अधिक की मजबूती दर्शाती है। यह रुपये की 11 फरवरी 2025 के बाद की सबसे अच्छी बढ़त रही, जब इसने 65 पैसे तक की मजबूती हासिल की थी। रुपये में आई यह तेजी निवेशकों और कारोबारियों के लिए सकारात्मक संकेत मानी जा रही है, क्योंकि इससे भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता का संकेत मिलता है।

रुपये की मजबूती के पीछे क्या कारण रहे?

रुपये की इस मजबूती के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं। सबसे महत्वपूर्ण कारण है विदेशी निवेशकों द्वारा किए जा रहे मजबूत निवेश प्रवाह, जिसे कस्टोडियल फ्लो कहा जाता है। जब विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार या अन्य परिसंपत्तियों में निवेश करते हैं, तो वे भारतीय रुपये की मांग बढ़ाते हैं, जिससे उसकी कीमत मजबूत होती है।

फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स एलएलपी के हेड ऑफ ट्रेजरी और एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनिल कुमार भंसाली के अनुसार, “रुपया दिन की शुरुआत में 87.23 के स्तर पर था, लेकिन निरंतर विदेशी निवेश प्रवाह के कारण इसमें मजबूती आई और यह 86.9550 के स्तर पर पहुंच गया। यदि वैश्विक व्यापार युद्ध (टैरिफ वॉर) में कोई नया तनाव नहीं आता है, तो मार्च के अंत तक रुपया 86.50 और संभावित रूप से 86.00 के स्तर तक जा सकता है।”

डॉलर इंडेक्स में गिरावट ने भी रुपये को दी ताकत

रुपये की मजबूती में अमेरिकी डॉलर की कमजोरी ने भी अहम भूमिका निभाई। अमेरिकी डॉलर की ताकत को मापने वाला डॉलर इंडेक्स, जो छह प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की स्थिति को दर्शाता है, 5 मार्च को 105.061 पर बंद हुआ। यह पिछले सत्र के 105.743 और सोमवार के 106.743 के मुकाबले कमजोर हुआ। डॉलर इंडेक्स में आई यह गिरावट इस बात का संकेत देती है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लेकर अनिश्चितता बढ़ रही है।

विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका द्वारा कनाडा, मैक्सिको और चीन पर टैरिफ बढ़ाने के फैसले से वैश्विक व्यापार प्रभावित हुआ है। हालांकि, निवेशकों को अब यह चिंता सताने लगी है कि इन टैरिफ्स का असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है। अगर अमेरिकी व्यापार गतिविधियां धीमी होती हैं, तो यह डॉलर को कमजोर कर सकता है, जिससे अन्य मुद्राओं को मजबूती मिलेगी। यही कारण है कि भारतीय रुपये को भी इस स्थिति में फायदा हुआ और यह डॉलर के मुकाबले मजबूत हुआ।

क्या रुपये की यह मजबूती जारी रहेगी?

रुपये की मजबूती आगे भी बनी रहेगी या नहीं, यह पूरी तरह से वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों और विदेशी निवेश के रुझान पर निर्भर करेगा। अगर विदेशी निवेश का प्रवाह जारी रहा और डॉलर में कमजोरी बनी रही, तो रुपये को और मजबूती मिल सकती है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर हालात अनुकूल रहे, तो रुपया 86.50 और 86.00 के स्तर तक भी जा सकता है। हालांकि, वैश्विक बाजारों में किसी भी बड़े झटके या व्यापारिक नीतियों में बदलाव से रुपये की यह मजबूती प्रभावित हो सकती है।

निवेशकों के लिए क्या संकेत?

रुपये की मजबूती से आयातकों को राहत मिलेगी क्योंकि इससे कच्चे तेल, सोना और अन्य आयातित वस्तुओं की लागत में कमी आ सकती है। इसके अलावा, भारतीय शेयर बाजार में निवेश करने वाले विदेशी निवेशकों के लिए भी यह सकारात्मक संकेत है, क्योंकि रुपये की मजबूती उनकी होल्डिंग्स के मूल्य को बढ़ा सकती है। हालांकि, निर्यातकों के लिए यह थोड़ा चिंता का विषय हो सकता है, क्योंकि रुपये की मजबूती से उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है।

निष्कर्ष

कुल मिलाकर, भारतीय रुपये की यह मजबूती घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत है। विदेशी निवेश के बढ़ते प्रवाह और डॉलर की कमजोरी ने रुपये को मजबूती दी है। अगर आगे भी यह रुझान बना रहता है, तो रुपया और मजबूत हो सकता है, लेकिन वैश्विक स्तर पर व्यापार युद्ध और अमेरिकी आर्थिक परिस्थितियों पर नजर बनाए रखना जरूरी होगा।

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