नासा के जेम्स वेब ने हमारे सौरमंडल से बाहर एक ग्रह पर कार्बन डाइऑक्साइड(CO,) की मौजूदगी देखी, क्या यह जीवन का संकेत है?
संक्षेप:-
नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने पहली बार हमारे सौरमंडल के बाहर HR 8799 e ग्रह के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मौजूदगी दर्ज की है। यह खोज ग्रह निर्माण के रहस्यों को उजागर करने के साथ-साथ संभावित जीवन की खोज में अहम साबित हो सकती है। वैज्ञानिक अब इस प्रणाली के अन्य ग्रहों और उनकी रासायनिक संरचना का गहराई से अध्ययन करेंगे।

क्या हमारे सौर मंडल के बाहर भी जीवन के संकेत छिपे हो सकते हैं? क्या दूर कहीं किसी और ग्रह पर भी हमारी तरह कोई आकाश की ओर देख रहा होगा? विज्ञान हमेशा इन सवालों के जवाब खोजने की कोशिश करता रहा है, और अब नासा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने हमें इन रहस्यों के करीब पहुंचाने का एक और मौका दिया है।
इस बार जेम्स वेब ने जो खोज की है, वह वाकई रोमांचक है। इसने पहली बार हमारे सौर मंडल से बाहर किसी ग्रह के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) की मौजूदगी दर्ज की है। यह खोज HR 8799 नामक एक दूरस्थ ग्रह प्रणाली में की गई, जो पृथ्वी से लगभग 130 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है।
HR 8799: एक अनोखी ग्रहीय प्रणाली
HR 8799 कोई साधारण ग्रह प्रणाली नहीं है। यह एक बहुग्रहीय प्रणाली है, यानी इसमें कई ग्रह मौजूद हैं। खास बात यह है कि यह प्रणाली अभी बहुत युवा है—महज 30 मिलियन साल पुरानी। अगर इसे ब्रह्मांडीय पैमाने पर देखें, तो यह अभी अपने बचपन में है।
इस प्रणाली का सबसे दिलचस्प ग्रह HR 8799 e है, जो अपने तारे से 1.5 अरब मील की दूरी पर स्थित है। अगर इसे हमारे सौर मंडल में रखें, तो इसकी स्थिति शनि और नेपच्यून के बीच होगी। यह ग्रह अब भी गर्म है और अपने निर्माण के समय की ऊष्मा उत्सर्जित कर रहा है, जो इसे अध्ययन के लिए और भी दिलचस्प बनाता है।
कैसे हुई यह अद्भुत खोज?
जेम्स वेब टेलीस्कोप किसी भी साधारण दूरबीन से कहीं अधिक शक्तिशाली है। यह इन्फ्रारेड प्रकाश का उपयोग करता है, जिससे यह उन ग्रहों को भी देख सकता है जो आमतौर पर अपने तारों की चमक में छिप जाते हैं। इस बार इसकी कोरोनाग्राफ तकनीक ने कमाल किया।
कोरोनाग्राफ एक ऐसा उपकरण है जो किसी तारे की तेज चमक को रोकता है, जिससे उसके आसपास के ग्रहों को देखना संभव हो जाता है। इसी तकनीक का उपयोग करके वैज्ञानिकों ने इस ग्रह से निकलने वाले इन्फ्रारेड प्रकाश का अध्ययन किया और उसमें कार्बन डाइऑक्साइड के संकेत पाए।
ग्रह निर्माण के रहस्य खुलने की उम्मीद
यह खोज सिर्फ एक ग्रह के वातावरण को समझने तक सीमित नहीं है। यह हमें यह भी समझने में मदद कर सकती है कि ग्रह आखिर बनते कैसे हैं।
विज्ञान मानता है कि बड़े गैसीय ग्रह दो तरीकों से बन सकते हैं। पहला तरीका है कोर एक्रीशन (Core Accretion), जिसमें छोटे-छोटे ठोस कण इकट्ठा होकर एक बड़ा कोर बनाते हैं और धीरे-धीरे उस पर गैस की परतें जमती जाती हैं। दूसरा तरीका है डिस्क अस्थिरता (Disk Instability), जिसमें एक गैसीय डिस्क अचानक ठंडी होकर सीधे एक विशाल ग्रह में बदल जाती है।
HR 8799 की खोज से यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि इनमें से कौन सा तरीका अधिक आम है।
क्या यह जीवन की खोज में एक कदम आगे है?
हालांकि, कार्बन डाइऑक्साइड अकेले यह साबित नहीं करता कि वहां जीवन है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह दर्शाता है कि ग्रह के वातावरण में जटिल रासायनिक प्रक्रियाएँ हो रही हैं। अगर आने वाले समय में इस ग्रह या अन्य एक्सोप्लैनेट्स पर पानी, मीथेन या ऑक्सीजन के संकेत भी मिलते हैं, तो यह संकेत हो सकता है कि वहां जीवन संभव हो सकता है।
अब वैज्ञानिक इस प्रणाली के बाकी ग्रहों का भी अध्ययन करेंगे। इसके अलावा, जेम्स वेब टेलीस्कोप से उन ग्रहों की भी खोज की जाएगी, जो अपने तारों के रहने योग्य क्षेत्र (Habitable Zone) में हैं। यह वह क्षेत्र होता है जहां तापमान इतना सही होता है कि वहां पानी तरल रूप में मौजूद रह सके—और जहां पानी है, वहां जीवन की संभावना भी हो सकती है।
क्या हम जल्द ही यह पता लगा पाएंगे कि ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं हैं? क्या कोई ऐसा ग्रह मिलेगा जहां जीवन के संकेत स्पष्ट रूप से दिखाई दें? जेम्स वेब टेलीस्कोप हमें इन सवालों के जवाब देने के करीब ला रहा है। हो सकता है कि भविष्य में कोई और बड़ी खोज हमें चौंका दे।

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