रुपये की छलांग: दो साल में रुपये का सबसे बेहतरीन हफ्ता, डॉलर के मुकाबले 86 रुपये के नीचे पहुँचा

संक्षेप
भारतीय रुपये ने इस हफ्ते दो साल में सबसे बेहतरीन प्रदर्शन किया, 86 रुपये के नीचे मजबूत होकर 85.9725 पर बंद हुआ। आरबीआई के स्वैप, विदेशी निवेश, गिरते डॉलर इंडेक्स और घटते व्यापार घाटे से रुपये को समर्थन मिला। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह मजबूती आगे भी जारी रह सकती है।

भारतीय रुपये का मूल्य बढ़ते हुए चार्ट पर दिखाया गया है, जो डॉलर के मुकाबले मजबूती दर्शा रहा है।

भारतीय रुपया इस हफ्ते जबरदस्त मजबूती के साथ बंद हुआ, जिसने दो साल में सबसे बेहतरीन साप्ताहिक प्रदर्शन दर्ज किया। इस बढ़त के पीछे कई अहम कारण रहे—आरबीआई का डॉलर की तरलता बनाए रखने के लिए USD/INR स्वैप ऑक्शन, विदेशी निवेश की आवक, गिरता डॉलर इंडेक्स और स्थिर कच्चे तेल की कीमतें।

रुपये की मजबूत रफ्तार

20 मार्च को रुपया 86.3675 के मुकाबले 85.9725 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। सत्र के दौरान इसने 85.9375 का 10-सप्ताह का उच्च स्तर भी छुआ। हफ्तेभर में 1.2% की बढ़त दर्ज करते हुए यह 9 जनवरी के बाद सबसे मजबूत स्थिति में रहा।

क्यों बढ़ रहा है रुपया?

विशेषज्ञों के अनुसार, आरबीआई की ओर से डॉलर की तरलता बढ़ाने और विदेशी पूंजी प्रवाह में तेजी से रुपये को सहारा मिला। एचडीएफसी सिक्योरिटीज के रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार के मुताबिक, “मार्च की शुरुआत से ही रुपये को आरबीआई की ओर से स्वैप और नियमित हस्तक्षेप का समर्थन मिल रहा है।”

बैंक ऑफ बड़ौदा की अर्थशास्त्री अदिति गुप्ता ने भी रुपये की मजबूती को विदेशी कर्ज प्रवाह, स्थिर कच्चे तेल की कीमतें, कम घरेलू मुद्रास्फीति और घटते व्यापार घाटे से जोड़ा।

व्यापार घाटे में आई कमी

फरवरी में भारत का व्यापार घाटा घटकर 14.05 अरब डॉलर रह गया, जो जनवरी में 23 अरब डॉलर था। इसके चलते भारत को एक दुर्लभ स्थिति में 4.5 अरब डॉलर का कुल व्यापार अधिशेष (surplus) भी मिला। यह घाटा पिछले साल फरवरी में 19.51 अरब डॉलर था। वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, अगस्त 2021 के बाद यह सबसे कम व्यापार घाटा है।

आगे क्या उम्मीद की जाए?

विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये की यह मजबूती आगे भी जारी रह सकती है, बशर्ते विदेशी निवेश का प्रवाह बना रहे और वैश्विक बाजार में अनिश्चितताएं सीमित रहें। आरबीआई का संतुलित मुद्रा प्रबंधन निवेशकों के विश्वास को बढ़ा रहा है, जिससे रुपये को और मजबूती मिलने की संभावना है।

भारत की अर्थव्यवस्था की यह चाल सिर्फ रुपये तक सीमित नहीं, बल्कि विदेशी निवेशकों की बढ़ती दिलचस्पी और मजबूत घरेलू नीतियों का भी संकेत है। अगर यह ट्रेंड जारी रहा, तो रुपये की यह चमक लंबे समय तक बरकरार रह सकती है।

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