ट्रम्प के टैरिफ वॉर में कनाडा कैसे देगा जवाब, पूरी दुनिया को कनाडा के पलटवार का इंतज़ार
संक्षेप:-
राष्ट्रपति ट्रम्प के टैरिफ वॉर के जवाब में कनाडा ने 25% काउंटर-टैरिफ लगाए, जिससे अमेरिका पर दबाव बढ़ा। ओंटारियो सरकार के बिजली शुल्क और अन्य प्रतिबंधों के कारण ट्रम्प को अपने टैरिफ में नरमी लानी पड़ी। अब पूरी दुनिया कनाडा की रणनीति को देख रही है, क्योंकि इसका असर वैश्विक व्यापार नीतियों पर पड़ सकता है।

डोनाल्ड ट्रम्प के नए टैरिफ वॉर ने दुनियाभर में उथल-पुथल मचा दी है। जब से राष्ट्रपति ट्रम्प ने कनाडा से आने वाले स्टील और एल्यूमिनियम पर भारी शुल्क लगाया है, तब से वैश्विक नेता इस बात पर नजरें गड़ाए हुए हैं कि कनाडा इस हमले का कैसे जवाब देगा। यूरोप से लेकर भारत तक के देश कनाडा की रणनीति को बारीकी से देख रहे हैं, क्योंकि अगर उसने अमेरिका को मुँहतोड़ जवाब दिया, तो यह आगे और देशों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है।
कनाडा की शांति नीति फेल, अब पलटवार की बारी
कनाडा शुरू में अमेरिका को मनाने की कोशिश कर रहा था। प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और अन्य नेताओं ने कई बार ट्रम्प प्रशासन से बात की, यहाँ तक कि मार-ए-लागो और वॉशिंगटन तक यात्राएँ कीं। कनाडा के अधिकारियों ने अमेरिकी सरकार से दोस्ताना संबंध बनाए रखने के लिए पूरी कोशिश की, लेकिन यह कूटनीति बेकार गई। ट्रम्प ने सिर्फ़ कनाडा ही नहीं, बल्कि यूरोपीय संघ, जापान, दक्षिण कोरिया और अन्य देशों पर भी भारी टैरिफ थोप दिए।
कनाडा के धैर्य की परीक्षा तब हुई जब ट्रम्प ने ड्रग तस्करी और सीमा सुरक्षा का बहाना बनाकर 25% का टैरिफ लगा दिया। जवाब में कनाडा ने भी 25% का टैरिफ लगाकर पलटवार किया, जिससे अमेरिकी कंपनियों को झटका लगा। प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और उनकी टीम ने ऐलान किया कि जब तक अमेरिका सम्मान नहीं दिखाता, तब तक कनाडा भी अपने टैरिफ बनाए रखेगा।
ओंटारियो का करारा जवाब—बिजली टैक्स ने हिलाया अमेरिका
इस टैरिफ युद्ध में सबसे दिलचस्प मोड़ तब आया जब ओंटारियो प्रांत के प्रीमियर डग फोर्ड ने अमेरिकी राज्यों को बिजली निर्यात करने पर 25% अतिरिक्त शुल्क लगा दिया। इस फैसले का असर सीधे न्यूयॉर्क, मिशिगन और पेनसिल्वेनिया जैसे राज्यों पर पड़ा, जहाँ कनाडा से आने वाली बिजली महत्वपूर्ण है। देखते ही देखते इन राज्यों में बिजली महंगी हो गई और इसका असर वहाँ के उद्योगों और उपभोक्ताओं पर दिखने लगा।
ट्रम्प ने पहले इसे नज़रअंदाज़ किया, लेकिन जब अमेरिकी व्यापार जगत से दबाव बढ़ा, तो उन्होंने कनाडा पर और सख्त टैरिफ लगाने की धमकी दी। उन्होंने कनाडा के स्टील और एल्यूमिनियम पर शुल्क बढ़ाकर 50% करने की चेतावनी दी। लेकिन यह रणनीति काम नहीं आई। कनाडा ने अपनी स्थिति से पीछे हटने से इनकार कर दिया, जिससे ट्रम्प प्रशासन को बैकफुट पर जाना पड़ा।
आखिरकार, जब ओंटारियो सरकार ने बिजली पर लगाए गए शुल्क को अस्थायी रूप से हटा दिया, तो ट्रम्प को भी अपने टैरिफ में नरमी लानी पड़ी। उन्होंने अपने 50% शुल्क को वापस 25% कर दिया और कहा, “मैं इस फैसले का सम्मान करता हूँ।”
कनाडा का संदेश: "ट्रम्प हमें कमजोर न समझें"
कनाडा के विदेश मंत्री मेलानी जोली ने दुनिया को आगाह करते हुए कहा, “ट्रम्प कनाडा के साथ जो कर रहे हैं, वही बाकी देशों के साथ भी होगा। अगला नंबर तुम्हारा है!” उनके इस बयान के बाद भारत, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश भी सतर्क हो गए।
ब्रिटिश कोलंबिया के प्रीमियर डेविड एबी ने खुलकर कहा, “हम अमेरिका को यह दिखाना चाहते हैं कि हम कितने नाराज हैं।” मैनिटोबा के प्रीमियर वैब किन्यू ने अपने राज्य में अमेरिकी शराब की बिक्री पर रोक लगा दी और ट्रम्प का मजाक उड़ाते हुए उनके हस्ताक्षर की नकल करने तक चले गए।
कनाडा की जनता में भी इस मुद्दे पर भारी गुस्सा है। एक सर्वे के अनुसार, 70% कनाडाई अब चाहते हैं कि सरकार अमेरिका के खिलाफ और कड़े कदम उठाए। कई व्यवसायों ने अमेरिकी उत्पादों का बहिष्कार शुरू कर दिया है, और सोशल मीडिया पर भी “बॉयकॉट अमेरिका” जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे हैं।
मैक्सिको की कूटनीति और कनाडा की आक्रामकता—कौन सही?
दूसरी तरफ, मैक्सिको ने अब तक संयम बनाए रखा है। वहाँ की राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबॉम ने ट्रम्प को शांत करने के लिए कूटनीतिक तरीका अपनाया, जिससे उसे कुछ छूट भी मिली। ट्रम्प ने खुद कहा कि उन्हें शीनबॉम का “सम्मान” है, इसलिए मैक्सिको को कुछ टैरिफ से छूट दी गई।
लेकिन कनाडा ने सीधा टक्कर लेने का फैसला किया है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कनाडा को ट्रम्प के खिलाफ़ आक्रामक रुख अपनाने की जरूरत है, जबकि कुछ इसे खतरनाक दांव मान रहे हैं।
अब आगे क्या?
अब सवाल यह है कि क्या कनाडा का यह कड़ा रुख उसे अमेरिका से बेहतर समझौता दिला पाएगा, या यह तनातनी उसके व्यापार को और मुश्किलों में डाल देगी?
डॉ. केविन मिलिगन, जो अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं, का मानना है कि “ट्रम्प ने हमें बता दिया कि उन्हें सबसे ज्यादा चिंता बिजली की है। इसका मतलब है कि अगर कनाडा को कुछ हासिल करना है, तो उसे यहीं चोट करनी होगी।”
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कनाडा को तुरंत USMCA (अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा व्यापार समझौता) को फिर से बातचीत के लिए लाना चाहिए। लेकिन जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफे और मार्क कार्नी के नए प्रधानमंत्री बनने के चलते यह प्रक्रिया धीमी हो गई है।
मार्क कार्नी, जो कि ट्रूडो की जगह प्रधानमंत्री बने हैं, ने हाल ही में BBC को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “अगर ब्रिटेन सोचता है कि चुप रहने से ट्रम्प उसे बख्श देंगे, तो उन्हें शुभकामनाएँ।”
दुनिया को कनाडा के अगले कदम का इंतज़ार
अब पूरी दुनिया कनाडा के अगले कदम पर नजरें गड़ाए बैठी है। भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोप के देश देख रहे हैं कि क्या ट्रम्प को टक्कर देने का कनाडा का तरीका सफल होता है या नहीं।
अगर कनाडा इस लड़ाई में जीत जाता है, तो यह उन सभी देशों के लिए उम्मीद की किरण बनेगा, जो ट्रम्प की आक्रामक आर्थिक नीतियों का शिकार बन रहे हैं। लेकिन अगर यह रणनीति विफल होती है, तो यह अन्य देशों के लिए चेतावनी भी होगी कि ट्रम्प से लड़ने का यह तरीका महंगा साबित हो सकता है।
एक बात तो तय है—कनाडा अब झुकने को तैयार नहीं। अब देखना यह है कि यह टैरिफ वॉर अमेरिका को किस हद तक झुकाने में सफल होता है।

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