वित्त सचिव तुहिन कांत पांडे को तीन साल के कार्यकाल के लिए अगला SEBI प्रमुख नियुक्त किया गया
संक्षेप:-
तुहिन कांत पांडेय को सेबी का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया है, जो अगले तीन साल तक इस पद पर रहेंगे। वे पहले वित्त और विनिवेश मामलों में अहम भूमिका निभा चुके हैं, जिसमें एयर इंडिया का विनिवेश और LIC का ऐतिहासिक IPO शामिल है। उनके कार्यकाल में कॉरपोरेट गवर्नेंस, आईपीओ, क्रिप्टोकरेंसी और निवेशकों की सुरक्षा पर कड़े फैसले लिए जा सकते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे सेबी को कितनी पारदर्शिता और प्रभावी तरीके से संचालित कर पाते हैं।

कौन हैं तुहिन कांत पांडेय?
क्या माधबी पुरी बुच को कार्यकाल विस्तार मिलना चाहिए था?
माधबी पुरी बुच का कार्यकाल कई ऐतिहासिक उपलब्धियों और विवादों से भरा रहा। वह न केवल सेबी की पहली महिला अध्यक्ष थीं, बल्कि निजी क्षेत्र से इस पद पर पहुंचने वाली पहली व्यक्ति भी थीं। हालांकि, उनके कार्यकाल के दौरान कई विवाद भी सामने आए, जिनमें हिंडनबर्ग रिसर्च और कांग्रेस द्वारा लगाए गए अनियमितताओं के आरोप शामिल थे। इसके अलावा, सेबी कर्मचारियों का एक वर्ग उन पर ‘टॉक्सिक वर्क एनवायरनमेंट’ बनाने का आरोप लगा चुका है, हालांकि यह मुद्दा अब सुलझ चुका है। पूर्व में सेबी प्रमुख यूके सिन्हा और अजय त्यागी को क्रमशः छह और पांच साल के कार्यकाल का विस्तार मिला था, लेकिन बुच को विस्तार न मिलने से यह स्पष्ट हो गया कि सरकार इस पद के लिए नए नेतृत्व को प्राथमिकता देना चाहती थी।
सेबी के नए प्रमुख से क्या उम्मीदें?
तुहिन कांत पांडेय ऐसे समय में सेबी की बागडोर संभाल रहे हैं जब भारतीय शेयर बाजार नई ऊंचाइयों को छू रहा है, लेकिन साथ ही नियामकीय चुनौतियों का भी सामना कर रहा है। प्रमुख मुद्दे जिन पर उनकी नीति प्रभाव डाल सकती है: 1. कॉरपोरेट गवर्नेंस और पारदर्शिता: सेबी को बाजार में निष्पक्षता बनाए रखने के लिए और कड़े नियमों की जरूरत हो सकती है। 2. आईपीओ और विनिवेश: सरकार की विनिवेश योजना में उनकी भूमिका अहम रहेगी। 3. क्रिप्टोकरेंसी और डिजिटल एसेट्स: क्रिप्टो मार्केट को लेकर सेबी की नीति स्पष्ट नहीं है, पांडेय के नेतृत्व में इसमें बदलाव आ सकता है। 4. निवेशकों की सुरक्षा: बाजार में निवेशकों को अधिक सुरक्षित और पारदर्शी माहौल देने की चुनौती होगी।
क्या तुहिन कांत पांडेय सेबी को नई दिशा दे पाएंगे?
पांडेय के पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए यह उम्मीद की जा सकती है कि वह अपने प्रशासनिक कौशल का उपयोग करते हुए सेबी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाएंगे। हाल के वर्षों में शेयर बाजार की गति को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि उनकी भूमिका आने वाले समय में बेहद महत्वपूर्ण साबित होगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वह अपने तीन साल के कार्यकाल में सेबी को किस दिशा में ले जाते हैं। क्या वे निवेशकों और कॉरपोरेट गवर्नेंस के बीच सही संतुलन बना पाएंगे? या फिर सेबी को किसी नए विवाद का सामना करना पड़ेगा? ये सवाल अभी अनुत्तरित हैं, लेकिन इतना तय है कि भारतीय शेयर बाजार के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।
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